यह कहानी सत्यता पर आधारित है। अलीगढ जिले में एक रामपाल नाम का व्यक्ति रहता था वो एक छोटा व्यपारी था जो दुसरे जिलों में समान बेचा करता था। एक बार वो कुछ समान लेकर बेचने गए। शाम होने पर वो रास्ते में एक धर्मशाला में रुका । वहां और भी व्यापारी रुके हुए थे। अचानक उनकी नज़र एक व्यापारी पर पड़ी जो अपना समान बेचकर वहीँ रुका हुआ था। उसके पास बहुत पैसे थे रामपाल की नज़र उस पैसे पर पड़ी और उनकी नीयत खराब हो गई। उन्होंने वो पैसा चुराने की योजना बनाई। रात में जब व्यापारी सो रहा था तब उसके पैसे चुराने लगा। चुराते समय उस व्यापारी की आँख खुल गई तब रामपाल ने उसका कत्ल कर दिया और रात में ही उसके पैसे चुराकर भाग गया। राम पाल ने उस पैसे की खूब जमीन खरीदी वो अब एक बड़ा व्यापारी बन गया। इसी दौरान उसकी शादी भी हो गई थी। बाद में उसके एक बेटा पैदा हुआ। बेटा जब 18 साल का हुआ तब वो बीमार रहने लगा। रामपाल ने उसका अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाया लेकिन वो बेटा ठीक ही नहीं हुआ। उसने उसके इलाज में अपनी सारी दौलत लगा दी लेकिन वो फिर भी ठीक नहीं हो पाया। एक दिन रामपाल अपने बेटे को देखकर रो रहा था। तब उसके बेटे ने रामपाल से कहा। पिताजी आप मुझे पहचान नहीं पाए। मै वही हूँ जिसे आपने धर्मशाला में मारा था और मेरा पैसा लेकर भाग आये थे। अब मैंने अपना पैसा वापस ले लिया है इलाज के रूप में। अब मै जा रहा हूँ। रामपाल को अपनी गलती का अहसास हुआ उसने अपना घरबार छोड़कर प्राशचित करने का निर्णय लिया। वो अब बाबा बन गया था और लोगों को एक स्थान से दुसरे स्थान फ्री में पहुंचाने लगा और सबको अपनी कहानी बताता था ताकि कोई लालच में आकर पाप ने करे। सबका लेखा जोखा होता है ऊपर। सबको उसके कर्मो की सजा जरूर मिलती है।
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